
बद्री नारायण की प्रेम कविताएं
02 फरवरी.
1.सब चुप थे
मेरे कुरते में जेब तो थी
पर जेब के पास पैसा नहीं था
पड़ोसी से तनख्वाह तक के लिए
मांग लिए पैसे उधार
ट्रेनें तो कई थीं पर ट्रेनों के पास मेरे जैसों के लिए
टिकट नहीं थी
कुछ जुगुत किया, कुछ जुगाड़
सौ रुपया ज्यादा दे किसी तरह टिकट बनवा लिया
निकल पड़ा भुवनेश्वर श्री राधा को खोजने
उतरा स्टेशन पर और खोजने लगा घूम-घूमकर
सकल भुवनेश्वर में
भुवनेश्वर जैसे पृथ्वी
भुवनेश्वर मानो पूरी सृष्टि
कहां मिलेगी श्री राधा
पता तो रामाकांत बाबू ने अपने काव्य में दिया था
श्यामा श्याम कृपालु भवन
न्याय नगर, चन्द्रशेखर भुवनेश्वर
वहां से कई बार चार छह महीने बाद तक भी
लौट आए थे मेरे लिखे कई पोस्ट कार्ड
शायद वहां उन्हें कोई रिसीव करने वाला ही नहीं था
फिर भी मन नहीं माना
सोचा चलो, एक बार कोशिश करते हैं
खोजते-खोजते उस पते पर पहुंचा
तो पता चला अभी अभी श्री राधा
घने कोहरे में प्रेमगीत लिखने अपने प्रेमी संग
मोटरसाइकिल पर बैठकर कहीं निकल गई हैं
पेड़ों पर गेरूए लिखे तो हैं उनके नाम
पर वह कहीं नहीं हैं
पिंजड़े होते हैं, पिंजड़ें में सुग्गे होते हैं
पर यहां अजब अचरज है लोगो
यहां एक हरा सुग्गा अंगौछा और बंडी पहने
एक आदमी के कंधे पर बैठ
चुग चुगकर चना खा रहा है
मैने सोचा चलो इसी आदमी से पूछें
शायद यह श्री राधा का सही ठौर बता दे
बता दे कि किस पहाड़ के किस चोटी पर
या किस जंगल के,
किस बरगद के नीचे उड़कर अपने प्रेमी संग
बैठी श्रीराधा कृपालु महाराज के चुंगल से
और रामाकांत बाबू की पंक्तियों से आजाद हो
इस वक्त चैन की सांस ले रही हैं
अब मुझे समझ आया कुछ कुछ यह राज कि
रामाकांत बाबू द्वारा दिए गए पते पर
वह मेरी चिट्ठीव क्यों रिसीव नहीं कर रही थीं
हो सकता है वह अपना ऐसा पता न चाहती हों
या हो सकता है वह न चाहती हों अपना कोई भी
निश्चित पता, हो सकता है वह अपने लिए
एक अनन्त आकाश चाहती हों
वह शायद इससे भी नाराज हों कि
मैं उसे ढूंढ़ने भुवनेश्वर ही क्यों आया
कन्धे पर सुग्गा बैठाए उस आदमी ने
एक लंबी सांस भरते हुए कहा
नहीं! बात यह नहीं है
न जाने किस बवंडर संग उड़कर आयी थी
उस रात कंधमाल में एक भयानक आग
उसी में जलकर मर गई श्रीराधा
मैं हताश हो गया
मेरी आंखों में आ गए आंसू
यह कैसे हो सकता है
वह कैसे मर सकती है
मेरा जीवन सकारथ किए बिना
अगर मैं हुसैन होता
तो माधुरी नहीं
तो ऐश्वर्या
ऐश्वर्या नहीं तो दीपिका,
मन को मना लेता
पर मैं ठहरा ठेठ किसान की औलाद
जिसे चाहा उस पर ही जीवन गंवा देने वाला
मैंने पेड़ों से पूछा, सड़क पर गिर रहे पत्तों से पूछा
सांझ में बह रही झुर झुर हवा से पूछा
पूछा आकाश में उड़ रहे पूर्णिमा के चांद से
सब चुप कोई कुछ बोल ही नहीं रहा था
घने कोहरे में सड़क किनारे झोंपड़े में
अर्द्ध वृत बनाए तीन बच्चे
बार बार बुझ जाते पत्तों से
आग जलाकर तापने की कोशिश में लगे थे
एक के हाथ में था खाली पेप्सी का डिब्बा
एक के हाथ में किसी के द्वारा फेंका गया
कैडबरी का रैपर था
एक कोहरे में ढूंढ़ रहा था कुछ
मैने उससे पूछा बच्चो कहीं देखा है
तुमने श्रीराधा को
एक बच्चा जो शून्य में कुछ खोज रहा था
बोल उठा श्री राधा को बेच दिया
मैं अवाक्
पूछा मैंने- किसने
राजा कह लो या कह लो सरकार
फिर तीनों जोर जोर से चिल्लाने लगे
राजा की हॉथी घंस गई
राजा हमारा फंस गया
श्री राधा को बेच दिया, ऐसा मानने को मेरा
मन अभी भी नहीं हो रहा था तैयार
मैंने जांचने के लिए पूछा, किसको बेचा
अब यह तो हम नहीं बता सकते
किसी पत्रकार या किसी अखबार से पूछो
अखबार ने कहा-विक्रम बेताल से पूछो
विक्रम बेताल ने कहा-
अपने यहां के अशोक सम्राट से पूछो
अशोक ने कहा समुद्र से पूछा
समुद्र अगर न बोले
तो सूख गई नदियों की धार से पूछो
मैंने सम्राट अशोक से
थोड़ी और की चिरौरी तो
उसने कहा ठहरो!
अभी भगवान बुद्ध से मोबाईल पर पूछकर बताता हूं
बुद्ध ने कहा हे श्रमण! मुझसे क्या
लॉर्ड ओबामा की रखैल से पूछो
उस तक न पहुंच पाओ तो
एम एन सी के किसी पीआरओ से
थोड़ा कोशिश करो पाने का राज
कुछ तो अशोक सिंघल जी को भी पता होगा
अगर पहुंच सके तो चाकू, त्रिशूल
लिए जंगल में घूमते गोंडा से, यहां आए दारासिंह से
पूछा, उसे भी होगा कुछ कुछ भान
मैं बहुत चक्कर में पड़ा
बहुत परेशान
जब हर तरफ से हार गया तो
सीकली के पेड़ के नीचे खड़ा हो
फूट फूटकर रो पड़ा
एक आई़ टी़ कंपनी की कार पर जा रही
लड़की, मुझे रोते देख
हल्के से मुस्काई
खिड़की से आ रही हवा में अपने लंबे
बाल को हल्के से लहराई
और हवा के तेज गति से
मेरे सामने से गुजर गई
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2. सन्देश
खोलता हूं मैं बार बार उसका भेजा
एसएमएस पढ़ता हूं
फिर बैठक करता हूं
फिर फिर पढ़ता हूं
सोचता हूं इतना सीधा
इतना सपाट
उसका एसएमएस हो कैसे सकता है
जरूर काेई शब्द, कोई वाक्य
जो मेरे लिए था
टाइप करते वक्त
भेजते वक्त या प्रोसेस करते वक्त
या तो छूट गया होगा
या हो गया होगा गलती से कुछ डिलीट
जो गलती से डिलीट हो गया होगा
उसमें क्या रहा होगा
उसमें मेरे लिए कुछ अद्भुत स्वप्न रहा होगा
या हो सकता है अपनी व्यस्तता के कारण
लिखना कुछ चाहा होगा, लिख कुछ और गया होगा
या कि जल्दबाजी में मेरा एसएमएस
किसी और को
किसी और का एसएमएस मुझे
फॉरवर्ड हो गया हाेगा
मैं मन को बार बार समझा रहा था
मन समझ भी रहा था
पर आंखें थीं कि मान ही नहीं रही थीं
और बक बक बोलती जा रही थीं
मैंने अपनी आंखों को चुप कराना चाहा
अरे मोबाईल मशीन है
उसमें ऐसी गलतियां हो जाती हैं
जिसकी आंखों में इतनी नमी थी
जिसके भीतर गहरा रहे थे कई कई समुद्र
जो उस वक्त मेरी कविताओं की
कल्पनाआें की उड़ान से भी
ज्यादा तेज उड़ रही थी
जो मेरे प्रतीकों को सही अर्थ में समझ रही थी
जिसे मुुझ पर संशय तो था
पर मेरी कविताओं पर था अनंत विश्वास
सेमल के लाल फूल पर बैठे सुग्गे की तरह
जो तीर्यक वाक्यों से मुझे खोलना भी चाह रही थी
वह ऐसा सपाट सन्देश कैसे भेज सकती है
हो सकता है उस वक्त वह
किसी और मूड़ में हो
या कि घर की या आस पास की
किसी जटिल हकीकत का सामना करने में उलझी हो
और सोचा हो-यह तो ऐसे ही भेज देती हूं
अगले सन्देश में कुछ सपने भेजूंगी
लोगो, कई दिन कई माह हो गए
मैं अभी भी कर रहा हूं
उसके एसएमएस का इंतजार।